ujjain mein mahaamrtyunjay jaap kyon karaaya jaata hai
बहुत समय पहले की बात है, हिमालय की दूसरी तरफ एक राजा राज्य करता था जिसका नाम हयग्रीव था, हयग्रीव बहुत ही उत्तम राजकाज करता था, लेकिन एकदिन उसे मृत्यु का भी सताने लगा और उसने ब्राह्मणो से इस भी से मुक्ति पाने का उपाय पूछा, तब ब्राह्मणो ने ६ महीने का समय माँगा और और इस भय से मुक्त होने का मार्ग खोजने निकल पड़े, जंगलो और वनो में भटकने के बाद वे एक राजा के राज्य में पहुंचे। ये राजा और कोई नहीं महाराजा विक्रमादित्य थे और नगरी थी उज्जैयनी उस समय इसे अवंतिका का नाम से जाना जाता था, सभी ब्राह्मण भिक्षा द्वारा अन्न प्राप्त करके छिप्रा नदी के तट पर ही विश्राम करने लगे, सुबह एक शेर की दहाड़ सुनकर उनकी जब आँख खुली तो देखा सामने शेर खड़ा हुआ था, वे भयभीत होकर कांपने लगे, जैसे जैसे शेर उनकी तरफ बढ़ रहा था उनका भी और ज्यादा बढ़ता जा रहा था, और शेर उनके बहुत पास आ गया था।
लेकिन जैसे ही शेर ने उनके ऊपर छलांग मारी एक राजपुरुस ने शेर को टककर देकर गिरा दिया, और उसकी आँखों में देखकर शेर भाग गया, ब्राह्मण अभी भी भयभीत थे और आंख भी बंद थी, फिर भी उन्होंने उस व्यक्ति को जाते हुए देखा, इसके बाद वे नित्य क्रिया से निबृत होकर नगर भृमण को निकल गए।
जब वे छिप्रा नदी के सहारे सहारे नगर में प्रवेश करके महाकाल के मंदिर में पहुंचे तब उन्होंने देखा की हज़ारो ब्राह्मण एक मन्त्र का एक स्वर में जाप कर रहे है, तो उन्होंने वहा पर खड़े पहरेदार से पूछा की ये ब्राह्मण लोग क्या कर रहे है, तब उसने बताया की ब्राह्मण लोग महामृत्युंजय मंत्र का जाप कर रहे है जिससे हमारे राजा को मृत्यु का भी भय हो और वो अपना राज निर्भय होकर कर सके।
अब ब्राह्मणो को उस प्रश्न का उत्तर मिलगया था, जिसके लिए वो पिछले कई महीनो से भटका रहे थे, बापस आपने राज्य में आकर उन्होंने अपने राजा को इस मंत्र के बारे में बताया फिर राजा ने स्वयं उज्जैन आकर अपने लिए महा मृत्युंजय मंत्र का जाप करवाया।
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