दोष निवारण पूजा में उज्जैन का महत्त्व
उज्जैन, महाकाल की नगरी है, न्याय प्रिय राजा विक्रमादित्य की नगरी है, क्षिप्रा नदी के तट पर है, मकर रेखा यही से गुजरती है, सम्पूर्ण विश्व में मंगलनाथ भगवान का मंदिर यही पर है, ये कुछ अतिविशेष विशेषताएं जिनके कारन समस्त दोष निवारण पूजा के लिए उज्जैन का विशेष महत्त्व है, यहाँ पर सर्वप्रमुख पूजा मंगलनाथ की पूजा है जो कुंडली से मंगलदोष निवारण अथवा उसकी तीब्रता कम करने के लिए की जाती है।
सबसे पहले मंगल दोष निवारण पूजा के बारे में बताते है, इसके कारन और इसका प्रभाव क्या है, मूल रूप से मंगल दोष उन जातको की कुंडली में होता है जिनका जन्म दिन सामान्यता मंगलवार को होता, लेकिन इसके अलाबा भी कई कारण होते है जिनके कारन कुंडली में मंगल दोष की सम्भावना रहती है।
अब बात करते है, की इसका प्रभाव क्या है, इसके प्रमुख प्रभावों में है विवाह में देरी, या विवाह कार्यो में वाधा होना, और अगर विवाह हो जाय तो परिवार इत्यादि समस्या आती रहती है, और इसके निदान में मंगल नाथ मंदिर में मंदिर भात पूजा करवाई जाती है, जिससे मंगल की उग्रता कम हो जाती है और विवाह की बाधाये दूर हो जाती है।
उज्जैन मंगल दोष निवारण के बाद सर्वप्रमुख पूजा जो होती है वो है काल सर्प दोष निवारण की पूजा, कुंडली में काल सर्प दोष का योग होने के कारण कार्यो में परेशानिया आना, काम बनते बनते रुक जाना या अन्य समस्या आना, अधिक परिश्रम के बाद भी मनोवांछित फल प्राप्त न होना, इन सबके निवारण उज्जैन में काल सर्प दोष निवारण पूजा की जाती है।
उज्जैन इन दोनों प्रमुखों पूजनो के अलाबा, पितृ दोष निवारण, वास्तु दोष निवारण जैसे पूजन होते है, लेकिन किसकी कुंडली में क्या दोष है ये स्वयं नहीं मान लेना चाहिए, सबसे पहले किसी विद्वान पंडित जी से बात करके अपनी कुंडली दिखा ले की वास्तव क्या है, इसके बाद उज्जैन आकर विधिवत पूजन करवाए और जीवन में आनंद प्राप्त करें।
अवंतिका खंड में भैरव तीर्थ का उल्लेख
अवंतिका खंड में भैरव तीर्थ तथा नागतीर्थ का भी उल्लेख है, चूंकि जन्मेजय के नाग सत्र के बाद जरकतारू पुत्र आस्तिक मुनि के द्वारा नाग सत्र रोका गया था और उनका स्थान परिवर्तित किया गया था, उसमें महाकाल वन की कई सीमा ली गई थी, यह भी एक कारण है कि यहां की गई पूजा सफल होती है। उज्जैन नागों का शरण स्थली भी रहा है, इसलिए यहां नाग पूजा की मान्यता शास्त्रों में वर्णित है।
भारत में कहां-कहां
पूजन के लिए संपूर्ण भारत में उत्तर तथा दक्षिण के तीर्थों का प्रभाव इसलिए विशेष माना गया है, क्योंकि राहू एवं केतु का स्थान वैज्ञानिक तथा धार्मिक दृष्टिकोण से इनमें दिखाई देता है। इसलिए महाराष्ट्र, त्रयंबकेश्वर, तिरुपति बालाजी के पास कालाहस्थि, कर्नाटक का नाग मंदिर, आंध्र प्रदेश का नाग मंदिर, रामेश्वर के पास नाग तीर्थ, महाराष्ट्र में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, दक्षिण में नागार्जुन इन सभी स्थानों पर अलग-अलग विधि से पूजा संपन्न की जाती है।
सबसे पहले जातक अपनी जन्म कुंडली या जन्म पत्रिका किसी विद्वान पंडित को दिखाए, ताकि उसमें क्या दोष है, किस तरह की पूजा करवाई जाना चाहिए, इसका पता लग सके। इसके बाद ही तीर्थ नगरी उज्जैन आकर दोष से संबंधित पूजा कराई जाना चाहिए। हमारे पास उज्जैन के प्रमुख विद्वान ब्राह्मणो की सम्पूर्ण जानकारी है, हमसे सम्पर्क करें हम आपका सही मार्गदर्शन करेंगे।
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